Explainer: शतरंज के नए शहंशाह गुकेश को सलाम, भारत यूं ही नहीं सरताज, जानिए पूरी कहानी
3 hours ago |

नई दिल्‍ली:

उम्र बस 18 साल. नाम डोम्माराजू गुकेश . दुनिया उन्हें डी गुकेश के नाम से जानती है. दुनिया का शतरंज का यह सबसे कम उम्र (Youngest World Chess Champion) का शहंशाह है. गुरुवार को गुकेश ने चीन के डिंग लिरेन को हराकर वर्ल्ड चेंस चैंपियन बन गए. 14 बाजियों तक चले मुकाबले में गुकेश के मन में क्या चल रहा था, यह उनकी जीत के बाद दिखा. गुकेश भावुक हो गए. आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. अपने मोहरों और खुद को संभालते उनकी तस्वीरों ने हर भारतीय को भिगो दिया. भारतीय आज गर्व से कह सकते हैं कि शतरंज की बाजी उनसे कोई जीत नहीं सकता. हमारे पास गुकेश है. एक नहीं, शतरंज के कई गुकेश अपने पास हैं. गुकेश उनमे सबसे चमकीले सितारे हैं. भारत शतरंज का शहंशाह यूं ही नहीं बना है. जानिए पूरी कहानी…        

खेल वैसे तो हर इंसान की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं, सतत मेहनत और धैर्य का बड़ा इम्तिहान होता है, लेकिन एक खेल ऐसा भी है जो इंसान की मानसिक क्षमताओं और धैर्य की सबसे बड़ी परीक्षा लेता है. यह है शतरंज (Chess). कहते हैं कि आठ बाई आठ यानी चौंसठ खानों में खेले जाने वाले इस खेल में इतनी चालें हो सकती हैं जितने पूरे ब्रह्मांड में एटम्‍स भी नहीं हैं. इसे इतना शानदार खेल बताया जाता है कि इस पर आप अपनी ज़िंदगी न्योछावर कर सकते हैं. ये वो खेल है जो एक दौर में दुनिया के दो सबसे ताक़तवर देशों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच श्रेष्ठता का पैमाना सा माना जाने लगा था. 

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इसी खेल की सबसे बड़ी प्रतियोगिता वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप इन दिनों भारत में चल रही थी, जिसमें भारत के 18 साल के डोम्माराजू गुकेश शतरंज के मौजूदा वर्ल्ड चैम्पियन चीन के डिंग लिरेन की बादशाहत को कड़ी चुनौती दे रहे थे. टूर्नामेंट बड़े ही दिलचस्प दौर तक पहुंचा. 14 मैचों तक चले मुकाबले में आखिर गुकेश बाजी मार ले गए. रोमांच किस कदर था यह आप उससे समझ सकते हैं कि 12 मैच पूरे होने तक डिंग लिरेन 6-6 के स्कोर से गुकेश के साथ बराबरी पर थे. दोनों ही खिलाड़ियों ने दो-दो मैच जीते थे और आठ मैच ड्रॉ रहे. 13वीं बाजी पर ड्रॉ पर खत्म हुई और 14वीं और निर्णायक बाजी गुकेश जीत गए. इस तरह शतरंज का अगला बादशाह मिल गया. 

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जीत के लिए दोनों ही खिलाड़ियों ने अपनी पूरी दिमागी क्षमताओं का इस्तेमाल किया. उनकी हर चाल पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की निगाहें लगी हुई तीं. उनकी हर चाल का लाइव विश्लेषण भी होता रहा. कौन कहां हावी हुआ, कौन कहां कमज़ोर पड़ा, उनकी एक-एक चाल, उनके चेहरे के भावों, उनकी उदासी, उनके उत्साह सब पर मैग्नस कार्लसन, विश्ननाथन आनंद, जूडिथ पोल्गर, सुज़ैन पोल्गर जैसे कई नामचीन खिलाड़ियों की नज़र थी. कहा जाता हैं कि चेस ग़लती के ख़िलाफ़ एक सतत संघर्ष है. एक छोटी सी ग़लती चैंपियन को अर्श से फर्श पर ला सकती है.

चतुरंग से पैदा हुआ शतरंज!

चेस ज़िंदगी की ही तरह है. यहां जो चाल पहले सोचता है वो विजेता होता है. शतरंज की आज ये जो बिसात बिछी हम देखते हैं ये हमेशा से ऐसी नहीं थी. दुनिया में शायद ही किसी खेल की ऐसी लंबी कहानी और दिलचस्प इतिहास होगा जैसा शतरंज का रहा है. कई पौराणिक किस्से तक उससे जुड़े हुए हैं.

कहते हैं कि शतरंज एक भारतीय खेल चतुरंग से पैदा हुआ है. इसकी कहानी त्रेता युग तक जोड़ी जाती है. कहा जाता है कि रावण के गुस्से से उनकी पत्नी मंदोदरी काफ़ी परेशान थीं. उन्होंने भगवान गणेश से प्रार्थना की कि वो इसका समाधान बताएं. भगवान गणेश ने रावण को चतुरंग खेल सिखाया और कहा कि असली युद्धों के बजाय वो इसे ही युद्ध मानें और खेलें. ये भी कहा जाता है कि मंदोदरी ने इस खेल का आविष्कार किया और रावण को सिखाया. मंदोदरी को इतनी महारत हासिल हो गई कि वो रावण को इस खेल में हरा दिया करती थीं. ये इस खेल का पौराणिक इतिहास है लेकिन ये तथ्य है कि आधुनिक शतरंज भारत में खेले जाने वाले चतुरंग नाम के खेल से निकला है. समय के साथ इसमें बदलाव आता गया, नियम बदलते गए.

2024 भारत की बादशाहत का साल 

लेकिन शतरंज का जो आधुनिक रूप है उसमें भारत को अपनी बादशाहत के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा और साल 2024 चेस में भारत की बादशाहत का साल है. 

इसी साल सितंबर में हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुए वर्ल्ड चेस ओलंपियाड में भारत ने अब तक का सबसे बड़ा मुक़ाम हासिल किया जब भारत के युवा खिलाड़ियों ने अपना लोहा मनवा दिया. इस ओलंपियाड में 190 देशों की टीमों ने हिस्सा लिया और भारत ने पुरुष और महिला दोनों ही टीम इवेंट्स में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. कामयाबी के लिहाज़ से भारत के लिए ये लम्हा क्रिकेट या फुटबॉल वर्ल्ड कप में जीत से कम नहीं रहा. भारत की पुरुष टीम में डी गुकेश भी शामिल थे जो इस समय वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप के ख़िताब के लिए चेस बोर्ड पर वर्ल्ड चैंपियन डिंग लिरेन से भिड़े हुए हैं. उनके साथ अर्जुन इरिगायसी, आर प्रज्ञानंद और विदित गुजराती ने इस सुनहरी ऐतिहासिक जीत को हासिल किया.

भारत की महिला टीम अपनी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी कोनेरू हम्पी के बिना बुडापेस्ट गई थी. इसके बावजूद दिव्या देशमुख, वंतिका अग्रवाल, डी हरिका, आर वैशाली, तानिया सचदेव और पी हरिकृष्णा की भारतीय टीम ने चेस ओलंपियाड का गोल्ड जीतकर दुनिया में एक नया मुक़ाम हासिल कर लिया.

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टॉप-10 चेस खिलाड़ियों में 3 भारतीय 

अब अगर डी गुकेश सिंगापुर में चल रही वर्ल्ड चैंपियनशिप का ख़िताब जीत लेते हैं तो भारत के लिए यह सोने पर सुहागा जैसा होगा. ऐसा दौर जिसकी कल्पना कोई भी देश करेगा. भारत में चेस के इस नए दौर के पीछे एक बड़ी प्रेरणा वर्ल्ड चेस चैंपियन रहे विश्वनाथन आनंद हैं. 

  • विश्वनाथन आनंद की शागिर्दी में पिछले कुछ वर्षों में भारत में शतरंज खिलाड़ियों की एक पूरी पौध तेज़ी से आगे बढ़ी है.
  • दुनिया के टॉप 10 चेस खिलाड़ियों में से तीन भारत के हैं. अर्जुन एरिगायसी, डी गुकेश और आर प्रज्ञानंद.
  • आज तक के सबसे युवा 15 ग्रैंडमास्टर्स की बात करें तो उनमें से पांच भारत के हैं. 
  • बारह साल की उम्र में डी गुकेश चेस के ग्रैंडमास्टर बनने वाले दुनिया के दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने और आज 18 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियन के ख़िताब के लिए लड़ रहे हैं. 
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  • 21 साल के ग्रैंड मास्टर अर्जुन इरिगायसी इसी महीने एक दिसंबर को शतरंज की ELO रेटिंग में 2800 का गोल्ड स्टैंडर्ड छूने वाले दूसरे भारतीय बने. उनसे पहले विश्वनाथन आनंद ही 2800 की रेटिंग छू पाए थे. 
  • इरिगायसी की कामयाबी को इस लिहाज़ से भी समझा जा सकता है कि शतरंज की दुनिया में आज तक महज़ 16 खिलाड़ी ही 2800 की ELO रेटिंग हासिल कर पाए हैं. मौजूदा वर्ल्ड रैंकिंग में वो दुनिया में चौथे स्थान पर हैं.
  • इरिगायसी जिस तेजी से छा रहे हैं, उससे लगता है कि 2026 में होने वाली अगली विश्व चेस चैंपियनशिप में वो नए चैंपियन की बादशाहत को चुनौती देने के लिए मौजूद रहेंगे.

आपको बता दें कि शतरंज की इस रेटिंग को ELO रेटिंग इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका आविष्कार एक हंगेरियन अमेरिकन फ़िज़िक्स प्रोफ़ेसर अर्पैड इलो ने किया था.

भारत के आर प्रज्ञानंद भी एक बड़े चैंपियन हैं. उन्होंने भी महज़ 12 साल 10 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर का ख़िताब हासिल किया. फरवरी 2022 में वो तत्कालीन वर्ल्ड चेस चैंपियन मैग्नस कार्लसन को रैपिड ऑनलाइन चेस टूर्नामेंट में हरा चुके हैं. इस साल नॉर्वे चेस टूर्नामेंट में वो नंबर वन मैग्नस कार्लसन और नंबर दो फैबियानों कैरुआना को क्लासिकल चेस में हरा चुके हैं. 

भारत में तीन साल का एक नन्हा शतरंज खिलाड़ी तो इन दिनों दुनिया भर में सुर्ख़ियों में है. कोलकाता का ये नन्हा चैंपियन अनीश सरकार चेस के इतिहास का सबसे कम उम्र का रेडेट चेस खिलाड़ी बन गया है. तीन साल, आठ महीने और 19 दिनों में ये मुक़ाम हासिल किया. ये वो उम्र है जब बच्चों के हाथ में कागज़-पेंसिल भी नहीं पकड़ाई जानी चाहिए. अनीश सरकार की FIDE रेटिंग 1555 है. पिछले महीने चैंपियन खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन कोलकाता में इस नन्ही जान से मिले तो हैरान रह गए. 

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… और हर दिल अजीज विश्‍वनाथन आनंद 

भारतीय युवा चेस खिलाड़ियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. इसमें विदित गुजराती, अरविंद चिदंबरम, पेंटल हरिकृष्णा, निहाल सरीन, रौनक साधवानी, एसएल नारायण, दिव्या देशमुख, हरिका द्रोणावल्ली, वैशाली रमेश बाबू, तानिया सचदेव,वंतिका अग्रवाल, भक्ति कुलकर्णी जैसे न जाने कितने ज़ोरदार पुरुष और महिला खिलाड़ी हैं. सबके नाम ले पाना संभव नहीं. इतने चैंपियन कतार में हैं. इन चैंपियनों के पीछे एक सबसे बड़ी प्रेरणा जिसका जितनी बार ज़िक्र किया जाए कम है. वो हैं हरदिल अज़ीज़ विश्वनाथन आनंद.

1988 में शतरंज की दुनिया में इस ध्रुव तारे का उदय हुआ जो 19 साल की उम्र में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने. उनकी जीत का सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर थमा नहीं. सन 2000 में वो चेस के वर्ल्ड चैंपियन बने तो भारत में ये खेल नई ऊंचाइयों को छू गया.

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विश्वनाथन आनंद एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि पांच बार वर्ल्ड चेस चैंपियन बने. रैपिड चेस में उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी माना गया. ये बार-बार दोहराना ज़रूरी है कि चेस की दुनिया में भारत आज जिस मुकाम पर पहुंचा है वो तभी हो पाया जब विश्वनाथन आनंद नाम का एक करिश्माई खिलाड़ी शतरंज के आसमान पर उभरा. वो इस खेल में अपनी कई नायाब चाल से सबको चौंकाते रहे.

2008 में जर्मनी के बॉन में वर्ल्ड चैंपियन रहे व्लादिमीर क्रैमनिक के ख़िलाफ़ उनके मैच को चेस के जानकार हमेशा याद करते हैं. आनंद की कामयाबी ही है कि 1988 में वो पहले ग्रैंडमास्टर बने तो साल 2024 आते आते भारत में चेस ग्रैंडमास्टर्स की संख्या 85 हो गई.

कोल्‍ड वॉर का दौर और शतरंज का खेल 

ये बताता है कि शतरंज की दुनिया में भारत आज कितनी बड़ी ताक़त बनकर उभरा है. बल्कि माना ये जा रहा है कि गुज़रे दौर में जो दबदबा तत्कालीन सोवियत संघ का चेस में रहा वो आज भारत का है. वैसे शतरंज की कोई भी बात तत्कालीन सोवियत संघ के बिना पूरी नहीं हो सकती जिसका एक बड़ा भूभाग आज रूस कहलाता है.

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बीसवीं शताब्दी में शतरंज की दुनिया पर तत्कालीन सोवियत संघ यानी USSR का कब्ज़ा रहा. मिखाइल बोट्विनिक, वैसिली स्माइस्लोव, विक्टर कोर्चनोय, बोरिस स्पास्की, अनातोली कार्पोव और गैरी कास्पारोव जैसे कई नामी खिलाड़ी शतरंज की दुनिया का पर्याय बन चुके थे. वो सोवियत संघ के हीरो थे जिनकी एक झलक के लिए प्रशंसक कई कई दिन इंतज़ार कर सकते थे. सोवियत संघ के लिए शतरंज महज़ एक खेल नहीं था बल्कि राष्ट्रीय गौरव और बौद्धिक सर्वोच्चता का प्रतीक था. ये वो समय था जिसे कोल्ड वॉर इरा कहा जाता है यानी शीत युद्ध का दौर जब कम्युनिस्ट सोवियत संघ हर क्षेत्र में पश्चिमी देशों को कड़ी चुनौती दे रहा था.

तत्कालीन सोवियत संघ ने अपने यहां चेस के टैलेंट के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ताकि दुनिया को ये दिखाया जा सके कि कम्युनिस्ट व्यवस्था में किस तरह की बौद्धिक क्षमताएं विकसित हो सकती हैं. उन्हें खिलाड़ी ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सोवियत विचारधारा और संस्कृति का दूत माना जाता था. शीत युद्ध के उस दौर का एक मुक़ाबला कोई नहीं भुला सकता.

सोवियत संघ और अमेरिका का मुकाबला 

1972 में शतरंज में सोवियत संघ की सर्वोच्चता को अमेरिका के मशहूर चेस प्लेयर बॉबी फिशर ने चुनौती दी. उनके सामने थे सोवियत संघ के चेस चैंपियन बोरिस स्पास्की. ये मुक़ाबला दो खिलाड़ियों का ही नहीं था बल्कि दो महाशक्तियों का भी बन गया था. इस मैच को इतनी हाइप मिली कि पूरी दुनिया की निगाहें इस मैच पर लग गईं. इसे मैच ऑफ़ द सेंचुरी बता गया. कहते हैं कि अमेरिका की जासूसी एजेंसी सीआईए और रूस की जासूसी एजेंसी केजीबी इस मैच पर गहरी नज़र बनाए हुए थे. अपने खिलाड़ियों और उनकी टीमों के सदस्यों की पल-पल की गतिविधियों पर उनकी नज़र थी. ये सब इसलिए कि मैच के नतीजों का कूटनीतिक असर बहुत बड़ा होना था. सोवियत संघ के बोरिस स्पास्की पर चेस की बादशाहत को बरक़रार रखने का भारी दबाव था. बोरिस स्पास्की इस दबाव के आगे टूट गए. मैच अमेरिकी खिलाड़ी बॉबी फिशर जीत गए. सोवियत संघ की दशकों की बादशाहत बिखर गई. हालांकि बहुत जल्दी ही सोवियत संघ हार के इस गुबार से बाहर निकला.

  • सोवियत संघ ने अनातोली कार्पोव और गैरी कास्पारोव जैसे बड़े चैंपियन दिए. 12वें चेस चैंपियन की बादशाहत 1975 से 1985 तक बनी रही. कार्पोवल कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी रहे. 
  • उनका तख़्त गैरी कास्पारोव ने हिलाया. कास्पारोव का 1985 से 2000 तक चेस पर एकछत्र राज रहा. कास्पारोव की टॉप FIDE चेस रेटिंग 2851 रही, जिसे 2013 तक नहीं तोड़ा जा सका. 
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद बने रूस में भी शतरंज की परंपरा टूटी नहीं. व्लादिमीर क्रैमनिक जैसे खिलाड़ी उभरे जो 2000 से 2006 के बीच क्लासिकल वर्ल्ड चेस चैंपियन रहे और 2006 में 14वें वर्ल्ड चेस चैंपियन बने. 
  • इस दौर में रूस की बादशाहत को सबसे बड़ी चुनौती विश्वनाथन आनंद से मिली, जो 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में पांच बार वर्ल्ड चैंपियन बने. 

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विश्‍वनाथन आनंद के बाद कार्लसन का दबदबा 

विश्वनाथन आनंद को चुनौती देने एक और आतिशी युवा सामने आया नॉर्वे का मैग्नस कार्लसन जिसने 2013 में विश्वनाथन आनंद को हराया तो फिर उसकी शतरंज में उसकी बादशाहत को छीनने वाला अगले दस साल तक कोई नहीं हुआ. 
कार्लसन पांच बार वर्ल्ड चेस चैंपियन रहे, पांच बार वर्ल्ड रैपिड चेस चैंपियन रहे,  सात बार वर्ल्ड ब्लिट्ज़ चेस चैंपियन रहे. 

मैग्नस कार्लसन को शतरंज के कई विशेषज्ञ दुनिया का सर्वकालीन महान शतरंज खिलाड़ी मानते हैं. चेस के लिए कहा जाता है कि ये विश्लेषण की कला है और इस कला में जैसे इंसान ही काफ़ी नहीं थे कि सुपर कम्प्यूटर भी उतर आए. 

चेस के लिए कहा जाता है कि एक ज़िंदगी उसके लिए काफ़ी नहीं है, लेकिन ये चेस की नहीं ज़िंदगी की ग़लती है. ये ऐसा खेल है ये जिसने इंसान की बौद्धिक क्षमता की परीक्षा तो ली ही, कंप्यूटर भी इसमें महारत हासिल करने के लिए मैदान में उतर गया. 

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कास्‍पारोव को मिली सुपर कंप्‍यूटर की चुनौती 

नब्बे के दशक में जब शतरंज की दुनिया में गैरी कास्पारोव का दबदबा था तो एक सुपर कंप्यूटर डीप ब्लू उन्हें चुनौती के लिए लैब में तैयार हो रहा था. अस्सी के दशक में कोई ये कहता तो उस पर हंसा जा सकता था लेकिन बीसवी सदी के आख़िरी दशक में कंप्यूटर डीप ब्लू ने गैरी कास्पारोव को चुनौती दी. डीप ब्लू को आईबीएम ने तैयार किया था. 1997 में गैरी कास्पारोव से उसका मुक़ाबला हुआ और उसने वर्ल्ड चैंपियन को 2.5 के मुक़ाबले 3.5 अंकों से हरा दिया. डीप ब्लू एक बार में दस करोड़ चालें सोच सकता था. हालांकि गैरी कास्पारोव इस हार से शुरू में नाखुश दिखे लेकिन बाद में उन्होंने इस हार को स्वीकार कर लिया और डीप ब्लू को तैयार करने वाली टीम के लिए उनके मन में सम्मान की भावना आ गई. इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ह्यूमन इंटेलिजेंस पर जीत की शुरुआत का संकेत माना गया. हालांकि इसे लेकर कई सवाल भी उठते रहे. 

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लेकिन ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है जिसे पलटा नहीं जा सकता. चेस में डीप ब्लू से शुरू हुआ सुपर कंप्यूटरों का सफ़र बहुत आगे पहुंच चुका है. AlphaZero, Stockfish, Leela Chess Zero, Komodo Chess और भी न जाने कितनी मशीन बन चुकी हैं, लेकिन मशीन आख़िर मशीन है. उसके खेल में वो मज़ा कहां जो इंसानों के खेल में है.