EXPLAINER: ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर क्यों कब्जा चाहते हैं ट्रंप, अमेरिका के लिए यह क्यों है अहम?
5 hours ago |

डोनाल्ड ट्रंप, जो अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, 20 जनवरी को अमेरिका की कमान संभालेंगे. हालांकि, अभी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के पास सत्ता है, फिर भी ट्रंप किसी भी अवसर को नहीं छोड़ रहे, जहां वह अपने आगामी कार्यकाल की रूपरेखा साझा न करें. कभी वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की बात करते हैं, तो कभी आर्कटिक क्षेत्र में स्थित ग्रीनलैंड पर सैनिक या आर्थिक तरीके से कब्जा करने की योजना बताते हैं, और कभी पनामा नहर को फिर से अमेरिका के नियंत्रण में लेने की बात करते हैं.

अब सवाल यह है कि ट्रंप ऐसा क्यों कर रहे हैं और उनकी रणनीति क्या है? हालांकि, कनाडा को अमेरिका में मिलाने के ट्रंप के बयान को ज्यादा गंभीरता से न लिया जाए, लेकिन ग्रीनलैंड और पनामा के बारे में उनके विचारों पर विचार करना जरूरी है. आखिर, ग्रीनलैंड और पनामा में ऐसा क्या है कि ट्रंप इन्हें अपने नियंत्रण में लेने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हट रहे?

पहले बात करते हैं ग्रीनलैंड की. दुनिया की भूराजनीतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि हर ताकतवर देश अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करना चाहता है. अमेरिका के सामने रूस का उभार और चीन का दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति बनना, दोनों ही बड़ी चुनौतियाँ हैं. इस संदर्भ में, ग्रीनलैंड पर सबकी नजरें हैं. ट्रंप इसे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी मानते हैं.

ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, जो उत्तरी ध्रुव के आसपास आर्कटिक सर्किल में स्थित है. इसका क्षेत्रफल भारत के लगभग दो तिहाई के बराबर, यानी साढ़े 21 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है. हालांकि, ग्रीनलैंड नाम से ऐसा लगता है कि यह हरा-भरा होगा, लेकिन इसका 80 फीसदी क्षेत्र बर्फ से ढका हुआ है. भूगोल में इसे उत्तरी अमेरिका का हिस्सा माना जाता है, लेकिन अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी से इसकी दूरी करीब 3000 किलोमीटर है.

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बर्फ से ढके इस इलाके में अमेरिका की दिलचस्पी क्यों है? 
ग्रीनलैंड एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है, लेकिन यह डेनमार्क का हिस्सा भी है, जिसकी अपनी सरकार और संसद है. राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह यूरोप के काफी करीब है, और नौवीं सदी से यह नॉर्वे और डेनमार्क के संपर्क में रहा है. ग्रीनलैंड का दो तिहाई बजट डेनमार्क से आता है, जबकि बाकी हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में मछली के व्यापार से मिलता है.

ग्रीनलैंड के उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीकी इलाके में गर्मियों में दिन दो महीने तक लंबे होते हैं, जबकि सर्दियों में रातें भी दो महीने तक लंबी रहती हैं. यह इलाका जितना बड़ा है, उतना ही कुदरती संसाधनों से भी समृद्ध है. यहाँ तेल, गैस और दुर्लभ खनिज (rare earth minerals) पाए जाते हैं, जो दुनिया में बहुत कम स्थानों पर मिलते हैं और बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के एक सर्वे में यह सामने आया कि ग्रीनलैंड में पाए जाने वाले 34 खनिजों में से 25 को यूरोपीय आयोग ने “critical raw materials” के रूप में वर्गीकृत किया था. इनमें बैटरियों और इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाले लिथियम जैसे खनिज भी शामिल हैं.

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हालांकि, पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में रखते हुए ग्रीनलैंड ने अपनी ज़मीन से तेल और गैस निकालने पर पाबंदी लगा दी है. इसके अलावा, स्थानीय लोगों के विरोध के कारण यहां खनन करना भी आसान नहीं है. यही वजह है कि ग्रीनलैंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से मत्स्यपालन और डेनमार्क से मिलने वाले बजट पर निर्भर है.

ग्रीनलैंड का 80 प्रतिशत क्षेत्र बर्फ से ढका हुआ है, और कई जगहों पर बर्फ की मोटाई 4 किलोमीटर तक है. हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण अब यह बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है, जिससे नए समुद्री मार्गों की संभावना बढ़ गई है. यही कारण है कि दुनिया के ताकतवर देश इस इलाके में अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहते हैं.

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ग्रीनलैंड पर ट्रंप के ताजा बयान का क्या है मतलब?
ग्रीनलैंड की भू-सामरिक अहमियत इतनी बड़ी है कि इसके आसपास कोई भी देश इसे अपनी पकड़ से बाहर नहीं जाने देना चाहता और इस पर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करता है. ग्रीनलैंड उत्तरी अमेरिका से यूरोप तक जाने वाले सबसे छोटे समुद्री मार्ग पर स्थित है. ग्रीनलैंड की राजधानी नूक, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन की तुलना में न्यूयॉर्क के काफी करीब है.

सामरिक दृष्टि से इसे महत्वपूर्ण मानते हुए, शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने डेनमार्क के साथ एक संधि के तहत ग्रीनलैंड में अपना राडार बेस स्थापित किया था. ऐतिहासिक रूप से, डेनमार्क ने यह रियायत इस वजह से दी, क्योंकि ग्रीनलैंड की सुरक्षा में वह खुद पूरी तरह सक्षम नहीं था और नाटो गठबंधन में शामिल होने के कारण उसे अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी मिल गई थी.

अमेरिका ग्रीनलैंड को अपने बैलिस्टिक मिसाइल वॉर्निंग सिस्टम के लिए भी महत्वपूर्ण मानता है. कई विशेषज्ञों के अनुसार, चीन और रूस के विस्तारवादी रुख को देखते हुए, अमेरिका ग्रीनलैंड पर अपना नियंत्रण खोना नहीं चाहता. ट्रंप के ताजे बयान इसी संदर्भ में आए हैं.

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डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद जिस तरह की बयानबाज़ी की, वह डेनमार्क को रास नहीं आई. 2019 में, राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसे डेनमार्क ने बेतुका करार देते हुए खारिज कर दिया था. अब, ट्रंप के फिर से इसी तरह के बयान पर डेनमार्क के प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे अमेरिका से करीबी सहयोग के इच्छुक हैं, लेकिन ग्रीनलैंड वहां के लोगों का है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ ग्रीनलैंड ही अपने भविष्य का फैसला कर सकता है. यूरोपीय यूनियन ने भी ग्रीनलैंड की संप्रभुता के सम्मान की बात की है और कहा है कि ग्रीनलैंड डेनमार्क का हिस्सा है.

इस बीच, ग्रीनलैंड की स्वायत्तशासी सरकार ने अपने अधिकारों को दोहराते हुए कहा है कि वे ट्रंप प्रशासन के साथ संपर्क स्थापित करने का इंतजार कर रहे हैं और अमेरिका के साथ करीबी सहयोग बनाए रखेंगे.

अब यह देखना होगा कि जब ट्रंप सत्ता में आएंगे, तो ग्रीनलैंड को लेकर उनके वर्तमान बयान जमीन पर कैसे नजर आते हैं. वहीं, रूस और चीन ग्रीनलैंड पर ट्रंप के अगले कदम पर नजर बनाए हुए हैं.

अब बात करते हैं पनामा नहर के मुद्दे पर
अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पनामा नहर को लेकर भी काफी आक्रामक दिखाई दे रहे हैं. वह इस पर कब्जा करने के लिए सैन्य ताकत के इस्तेमाल की संभावना को भी नकारते नहीं हैं. लेकिन आखिर क्या है इस पनामा नहर में, जो ट्रंप को इसे लेकर इतना उत्तेजित कर रहा है? इसका जवाब है, उस नहर के जरिए होने वाला वैश्विक व्यापार.

आज दुनिया के समुद्री परिवहन का 5% अकेले पनामा नहर से होकर गुजरता है. हर साल इस नहर से 270 अरब डॉलर की लागत का सामान गुजरता है, और अमेरिका के कंटेनर ट्रैफिक का 40% अकेले इसी रूट से होता है. यही कारण है कि पनामा नहर अमेरिका के लिए सामरिक और कारोबारी दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह नहर पनामा देश में स्थित है, जो उत्तर और दक्षिण अमेरिका को जोड़ता है.

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पनामा नहर का इतिहास और महत्व
पनामा के एक छोर पर जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर से समृद्ध कोलंबिया स्थित है, जबकि पनामा 1903 तक कोलंबिया का हिस्सा था. पनामा के दूसरे छोर पर प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध देश कोस्टा रिका है. भौगोलिक दृष्टि से पनामा एक Isthmus (भूदमरी मध्य) है, जहां एक ओर उत्तरी प्रशांत महासागर, दूसरी ओर कैरिबियाई सागर, और तीसरी ओर पनामा की खाड़ी स्थित है. पनामा की यह भौगोलिक स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि कोलंबिया से पनामा की आज़ादी का समर्थन करने वाले अमेरिका ने 1903 में पनामा की स्वतंत्रता के बाद उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए और इसका लाभ भी उठाया. उसी वर्ष, पनामा ने अमेरिका को अपनी दो सागरों को जोड़ने वाली पनामा नहर बनाने, चलाने और उसकी रक्षा करने का अधिकार प्रदान किया. अमेरिका ने ग्यारह साल में, 1914 तक इस नहर को पूरा कर लिया.

अमेरिका के लिए पनामा नहर का महत्व
82 किलोमीटर लंबी यह नहर अमेरिका और पूरी दुनिया के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. पनामा नहर बनने के बाद, जहाजों को अमेरिका या कनाडा के पश्चिमी तट तक पहुंचने के लिए अब दक्षिण अमेरिका का पूरा चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं रही. पहले, जहाजों को दक्षिण अमेरिका के ध्रुवीय दक्षिणी छोर, केप हॉर्न से गुजरना पड़ता था. उदाहरण के लिए, यदि न्यूयॉर्क से सैन फ्रांसिस्को समुद्री मार्ग से जाना होता था, तो पहले केप हॉर्न से होकर 20,900 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था. लेकिन पनामा नहर के बनने से यह दूरी केवल 8,370 किलोमीटर रह गई.

पनामा नहर के बनने के बाद से समुद्री कारोबार की स्थिति ऐसी हो गई है कि हजारों जहाज इस नहर के रास्ते कैरिबियाई सागर से उत्तरी प्रशांत महासागर की ओर जाते हैं. जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया, दुनिया का 5% समुद्री परिवहन पनामा नहर के रास्ते होता है, और अमेरिका के कंटेनर ट्रैफिक का 40% इसी नहर से गुजरता है. 2023 में, इस नहर से 14,000 से अधिक जहाज गुजरे. यह नहर दुनिया के 170 देशों के 2,000 से अधिक बंदरगाहों को जोड़ती है.

असल में, दुनिया का 90% सामान समुद्री मार्गों से ही सप्लाई होता है, इसलिए ऐसी नहरें महत्वपूर्ण हो जाती हैं जो समुद्री रास्तों को छोटा कर देती हैं. पनामा नहर दुनिया की कुछ गिनी-चुनी नहरों में से एक है, जो वैश्विक व्यापार के लिए एक अहम कड़ी है.

पनामा नहर पर ट्रंप के बयान और उसकी पृष्ठभूमि
1979 और 1999 में पनामा ने अमेरिका के साथ कुछ अतिरिक्त संधियां कीं, जिनके परिणामस्वरूप 1999 से पनामा ने इस नहर पर पूरा अधिकार और नियंत्रण प्राप्त कर लिया. अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस स्थिति से नाराज नजर आ रहे हैं. दो दिन पहले, उन्होंने दिवंगत अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर की आलोचना की, क्योंकि उनके शासनकाल में अमेरिका ने पनामा नहर पर अपना अधिकार छोड़ दिया था. ट्रंप का मानना है कि 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका ने मच्छरों से घिरे एक दलदली इलाके में इस नहर को बनाने में समय और संसाधन लगाए, इसलिए इसे अमेरिका के नियंत्रण में रखा जाना चाहिए.

ट्रंप का यह भी मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में चीन ने इस सामरिक रूप से महत्वपूर्ण नहर पर अपने प्रभाव का विस्तार किया है, और अब इस नहर से गुजरने के लिए अमेरिका से ज्यादा पैसा लिया जा रहा है.

चीन के प्रभुत्व के साथ पनामा नहर की स्थिति
दक्षिण अमेरिका के देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर अमेरिका पहले से ही सतर्क है. सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से इससे निपटने के लिए ट्रंप पनामा नहर को लेकर अपनी कड़ी टिप्पणी कर रहे हैं. हालांकि, सत्ता में आने के बाद वे क्या कदम उठाएंगे, यह देखना अभी बाकी है.

पनामा नहर पर सूखा और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
पनामा नहर की स्थिति केवल चीन के प्रभुत्व के कारण ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण भी प्रभावित हो रही है. पिछले दो वर्षों में, सूखा ने पनामा नहर पर गंभीर असर डाला है. 2022 के अंत से शुरू हुए सूखे का प्रभाव 2023 तक जारी रहा, जिसके कारण नहर के जल स्रोत वाली झीलें सूखने लगीं और नहर में पानी की कमी हो गई. इस कारण, नहर से जहाजों का आना-जाना प्रभावित हुआ और पनामा कैनाल अथॉरिटी ने नहर से गुजरने वाले जहाजों की संख्या और उनके आकार पर पाबंदियां लगा दीं. इसके परिणामस्वरूप, मालवाहक जहाजों की संख्या 40% तक घट गई और कई जहाजों को लंबा मार्ग अपनाना पड़ा, जिससे लागत में वृद्धि और प्रदूषण में भी इजाफा हुआ.

पनामा नहर का निर्माण और लॉक सिस्टम
पनामा नहर का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया थी. अनुमान है कि नहर खोदने में इतनी मिट्टी और चट्टानें हटाई गईं कि उससे पूरा मैनहटन आइलैंड 12 फीट तक भर सकता था. नहर का निर्माण आसान नहीं था क्योंकि इसका अटलांटिक सागर वाला छोर, प्रशांत महासागर से काफी नीचे था. इस कारण, जहाजों को ऊपर चढ़ाकर अटलांटिक से प्रशांत महासागर की ओर भेजा जाता था. इसके लिए तीन जगहों पर लॉक बनाए गए थे, जिनकी मदद से जहाजों को ऊपर उठाया या नीचे उतारा जाता था.

अटलांटिक छोर से जहाज नहर में प्रवेश करता है, तो पहला लॉक बंद कर दिया जाता है. इसके बाद, पानी भरकर नहर का स्तर ऊपर उठाया जाता है और जहाज दूसरे लॉक में प्रवेश करता है. फिर, दूसरा लॉक बंद किया जाता है और पानी भरकर नहर का स्तर फिर से ऊंचा किया जाता है. इस तरह, जहाज तीन लॉक्स के माध्यम से प्रशांत महासागर तक पहुंचता है.

पनामा नहर का इतिहास
पनामा नहर बनाने का विचार 15वीं शताब्दी का था, लेकिन इसका पहला प्रयास फ्रांस ने किया था. मिस्र में स्वेज नहर बनाने वाले बिल्डर, काउंट फर्डिनेंड डे लेस्सेप्स को 1880 में यह काम सौंपा गया था, लेकिन तकनीकी और आर्थिक समस्याओं के कारण इसे रोकना पड़ा. 1903 में, अमेरिका ने इस पर काम तेज़ किया और 40,000 से अधिक मजदूरों को काम पर लगाया. येलो फीवर और मलेरिया के कारण कई मजदूरों की मौत हुई, फिर भी काम जारी रहा और 1914 में यह नहर पूरी हो गई.

दुनिया की अन्य महत्वपूर्ण नहरें

ग्रैंड कैनाल, चीन – 1776 किलोमीटर लंबी यह नहर बीजिंग को हांगझाऊ से जोड़ती है और यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है. इसे 330 साल ईसा पूर्व से बनाने का काम शुरू हुआ था.

स्वेज नहर – 193.30 किलोमीटर लंबी यह नहर 1869 में पूरी हुई, जो भूमध्य सागर को स्वेज़ की खाड़ी से जोड़ती है. यह नहर यूरोप और एशिया को सीधे जोड़ती है.

पनामा नहर – 1914 में पूरी हुई, यह नहर अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है और वैश्विक समुद्री व्यापार का 5% हिस्सा इसी से गुजरता है.

इयरी कैनाल, अमेरिका – 584 किलोमीटर लंबी यह नहर 1817 से 1825 के बीच बनी और अमेरिका के मिडवेस्ट के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कराकुम कैनाल, तुर्कमेनिस्तान – 1988 में पूरी हुई यह नहर सोवियत संघ के दौर में बनाई गई थी और तुर्कमेनिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई.