नई दिल्ली:
रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में अब दुनिया भारत का लोहा मान रही है. भारत हाई टेक्नीक और हाई क्वालिटी मिलिट्री हार्डवेयर बना रहा है, इसलिए हाल के समय में भारत की हथियार निर्यात करने की डील भी बढ़ी है, और इसमें सबसे बड़ा योगदान ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile) का है. ये भारत और रूस के सहयोग से बना है. ब्रह्मपुत्र और मोस्कवा नदियों के नाम पर इस मिसाइल का नाम ब्रह्मोस रखा गया है. ब्रह्मोस रक्षा के क्षेत्र में भारत की सफलता की एक सुनहरी कहानी है.
भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस (BRAHMOS Supersonic Cruise Missile) की विश्वसनीयता की वजह से अब कई देशों को भारत के हथियारों और मिसाइलों पर चीन से ज्यादा भरोसा है.
भारत और रूस ने मिलकर बनाया है ब्रह्मोस
ब्रह्मोस मिसाइल को भारत और रूस ने मिलकर बनाया है. इसे जमीन,पुनडुब्बी, युद्धपोत या लड़ाकू विमान कहीं से भी छोड़ा जा सकता है. स्पीड की बात करें तो ध्वनि की रफ्तार से भी ढाई गुना से ज्यादा तेज, जो रडार की पकड़ में भी आसानी से नहीं आती, वहीं इसका निशाना चूकता नहीं है. इसको मार गिराना लगभग असंभव है.
ब्रह्मोस मिसाइल का वजन 3000 किलोग्राम है और इसकी लंबाई 8.4 मीटर है. ब्रह्मोस की मारक क्षमता 450 किलोमीटर तक है. इसकी रफ्तार अमेरिका के सबसोनिक तोमाहावक क्रूज मिसाइल से तीन गुनी अधिक है. वर्तमान ब्रह्मोस 49,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकता है और महासागरों की सतह पर भी समान रूप से तैर सकता है.
अमेरिका और रूस ने की भारत को सहयोग की पेशकश
नई पीढ़ी का ब्रह्मोस अंतिम सफल परीक्षण के बाद 600-800 किमी तक मार कर सकता है. नई पीढ़ी के हाइपरसोनिक ब्रह्मोस की गति मौजूदा मैक 2.8 से बढ़कर 7-8 मैक होगी, जो अपेक्षित पिन-पॉइंट ब्रह्मोस सटीकता के साथ होगी. अमेरिका और रूस दोनों ने आवश्यकतानुसार हाइपरसोनिक तकनीक पर भारत के साथ सहयोग करने की पेशकश की है.
इसे वैश्विक स्तर पर सबसे अग्रणी और सबसे तेज व सटीक हथियार के रूप में मान्यता हासिल है. ब्रह्मोस ने भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारतीय सेना ने 2007 से कई ब्रह्मोस रेजिमेंटों को अपने आर्सेनल से जोड़ा था.
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल में दो स्टेज वाला ठोस प्रोपेलेंट बूस्टर इंजन लगा है, जो इसे सुपरसोनिक गति तक ले जाता है. दूसरे स्टेज में तरल रैमजेट इंजन है जो इसे क्रूज़ फेज में मैक 3 (ध्वनि की गति से 3 गुना) गति के करीब ले जाता है.
ब्रह्मोस के महानिदेशक अतुल दिनकर राणे का मानना है कि भारत 2026 तक 3 अरब डॉलर की ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात करेगा, क्योंकि वर्तमान में 12 से अधिक देश इस पर बातचीत कर रहे हैं.
“ब्रह्मोस बेहद ख़तरनाक हथियार है. ऐसा हथियार दुनिया में नहीं है. इसे और मारक बनाने के लिए हम क्या कर रहे हैं ये तो नहीं बता पाएंगे, लेकिन आपको ये भरोसा दे सकते हैं कि ब्रह्मोस के सामने कोई दूसरा हथियार नहीं आ पाएगा. ब्रह्मोस 25 साल पहले शुरू हुआ. उसके बाद हम इसमें कई सुधार करते गए.आज जो कर रहे हैं हम उससे बेहतर भी करेंगे. ये बड़ा है और काफी भारी है, इसको हल्का करने पर हम काम कर रहे है.”
अतुल दिनकर राणे
ब्रह्मोस के महानिदेशक
ब्रह्मोस भारतीय नौसेना के युद्धपोतों की मुख्य हथियार प्रणाली है और इसे इसके लगभग सभी सर्फेस प्लेटफार्म पर तैनात किया गया है. इसका एक पानी के नीचे का संस्करण भी विकसित किया जा रहा है, जिसका उपयोग न केवल भारत की पनडुब्बियों द्वारा किया जाएगा, बल्कि मित्र देशों को निर्यात के लिए भी पेश किया जाएगा.
हाल ही में इंडियन नेवी ने ब्रह्मोस मिसाइल के एडवांस वर्जन का भी सफल परीक्षण कर लिया है. इस दौरान मिसाइल ने एकदम सटीक निशाना लगाया. ब्रह्मोस मिसाइल के एडवांस वर्जन में कई अपग्रेडेशन किए गए हैं. इस नए अपग्रेडेशन के बाद ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता और ज्यादा बढ़ गई है. इस परीक्षण को सामरिक नजरिए से भी बेहद खास माना जा रहा है. ये दुनिया की सबसे घातक क्रूज मिसाइलों में से एक है.
भारत ने फिलिपींस को दिया ब्रह्मोस मिसाइल
इसी साल भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम द्बारा विकसित ब्रह्मोस मिसाइल की फिलिपींस को आपूर्ति की गई है. इस मिसाइल प्रणाली को हासिल करने वाला फिलिपींस पहला विदेशी राष्ट्र बना. ये एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था. जनवरी 2022 में ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) ने फिलिपींस के राष्ट्रीय रक्षा विभाग के साथ 37.49 करोड़ डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे. इसे जिम्मेदार रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने की भारत सरकार की नीति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना गया.
ब्रह्मोस में 49.5/50.5 प्रतिशत भागीदार रूस, भारत के साथ अपने आर्थिक और सैन्य संबंधों को बेहद महत्व देता है. इसने संयुक्त रूप से उन देशों को ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्यात की अनुमति देने का फैसला लिया था जो रूस और भारत दोनों के मित्र हैं.
कई अन्य मित्र देशों में भी निर्यात किया जा सकता है ब्रह्मोस
अद्वितीय इस ब्रह्मोस एयर लॉन्च्ड क्रूज़ मिसाइल (एएलसीएम) को जल्द ही अन्य मित्र देशों में भी निर्यात किया जा सकता है. पहली बार, भारत ने फिलीपींस, आर्मेनिया, पोलैंड, तंजानिया, मोजाम्बिक, जिबूती, इथियोपिया और आइवरी कोस्ट में डिफेंस अताशे तैनात किए हैं. इस सूची का विस्तार होने की संभावना है, क्योंकि अधिक देश भारत के साथ रक्षा सहयोग में रुचि दिखाएंगे. जिन देशों को ब्रह्मोस निर्यात किया जा सकता है उनकी सूची भी लगातार बढ़ रही है.
कई देश ब्रह्मोस खरीदने में दिखा रहे रुचि
ब्रह्मोस मिसाइलों को हासिल करने के लिए बातचीत कर रहे कई देशों में से, खासकर संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जल्द ही इन्हें खरीद सकता है, क्योंकि दोनों के पास बजट को लेकर कोई समस्या नहीं है. वहीं लंबी बातचीत के जरिए वियतनाम और इंडोनेशिया कर्ज के साथ इसे खरीदना चाहते हैं और ब्रह्मोस न खरीदने के चीनी दबाव को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं मलेशिया और थाईलैंड भी इसमें रुचि रखते हैं, लेकिन उन्हें भी ड्रैगन के दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
विनिर्माण को बढ़ावा देने की महत्वाकांक्षी पहल ने एक सपने को एक शक्तिशाली आंदोलन में बदल दिया है और इसके प्रभाव से पता चलता है कि भारत अब रुकने वाला नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ को विनिर्माण क्षेत्र में भारत की प्रगति बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि भारत जैसा प्रतिभाशाली राष्ट्र केवल आयातक ही नहीं बल्कि निर्यातक भी बने.
नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री
21,000 करोड़ रुपये हुआ रक्षा उत्पादन निर्यात
पीएम मोदी ने कहा कि आज रक्षा उत्पादन निर्यात 1,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपये हो गया है और 85 से अधिक देशों तक पहुंच गया है. उन्होंने कहा कि आज के भारत के कई प्रतीक ब्रह्मोस मिसाइल पर गर्व से ‘मेक इन इंडिया’ का ठप्पा लगा हुआ है.